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हिन्दी दिवस प्रतियोगिता भाग 10( मानवता) लेखनी कहानी -01-Sep-2022


     शीर्षक :- मानवता

आज के इन्सान की मानवता न जाने कहाँ खोगयी है।
मानो उसकी इन्सानियत गहरी नींद में ही सो गयी है।।
हर कोई अपना मतलब पूरा हौने तक ही अपना। है।
उसके बाद तो जैसे सब कुछ मानो लगता सपना है।।
तो क्या ये हमारा जीवध मतलब के लिए ही बना है।
मतलब निकलने के बाद उनकी गली में जाना मना है।।
वाह रे इन्सान तू अपनी गैरत कहाँ बेचकर आया है।
तू गैरत बेचकर इतना पाप खरीदकर ले आया। है।।


हिन्दी दिवस प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
10/09/2022

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6 Comments

Palak chopra

10-Sep-2022 08:08 PM

Bahut khoob 💐👍

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Bahut khoob 💐👍

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Sachin dev

10-Sep-2022 05:17 PM

Nice 👍

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